Tuesday 18 September 2018

"दूसरों के ऐब ऐब ढूंढते ढूंढते
लगा हर चश्म पे आज चश्मा है
कुछ इधर टटोलते कुछ उधर टटोलते
ऐसा कर के सबकी पोल ये खोलते
पूछने पर कहते चश्म पर तो चश्मे का पहरा है
कहाँ कुछ हमे दिखता गहरा है।"

Wednesday 29 March 2017

*किस्सा रफ़ काॅपी का*📓

              हर सब्जेक्ट की काॅपी अलग अलग बनती थी, परंतु एक काॅपी ऐसी थी जो हर सब्जेक्ट को सम्भालती थी। उसे हम रफ़ काॅपी कहते थे।

यूं तो रफ़ काॅपी का मतलब खुरदुरा होता है। परंतु वो रफ़ काॅपी हमारे लिए बहुत कोमल होती थी। कोमल इस सन्दर्भ में कि उसके पहले पेज पर हमें कोई इंडेक्स नहीं बनाना होता था, न ही शपथ लेनी होती थी कि, इस काॅपी का एक भी पेज नहीं फाडे़ंगे या इसे साफ रखेंगे।
                उस काॅपी पर हमारे किसी न किसी पसंदीदा व्यक्तित्व का चित्र होता था। उस काॅपी के पहले पन्ने पर सिर्फ हमारा नाम होता था और आखिरी पन्नों पर अजीब सी कला कृतियां, राजा मंत्री चोर सिपाही या फिर पर्ची वाले क्रिकेट का स्कोर कार्ड। उस रफ़ काॅपी में बहुत सी यादें होती थी।
जैसे अनकहा प्रेम,
अनजाना सा गुस्सा,
कुछ उदासी,
कुछ दर्द, हमारी रफ काॅपी में ये सब कोड वर्ड में लिखा होता था
जिसे कोई आई एस आई
या
सी आई ए डिकोड नहीं कर सकती थी।
 उस पर अंकित कुछ शब्द, कुछ नाम कुछ चीजें ऐसी थीं, जिन्हें मिटाया जाना हमारे लिए असंभव था। हमारे बैग में कुछ हो या न हो वो रफ़ काॅपी जरूर होती थी। आप हमारे बैग से कुछ भी ले सकते थे पर वो रफ़ काॅपी नहीं। हर पेज पर हमने बहुत कुछ ऐसा लिखा होता था जिसे हम किसी को नहीं पढ़ा सकते थे।
             कभी कभी ये भी होता था कि उन पन्नों से हमने वो चीज फाड़ कर दांतों तले चबा कर थूक दिया था क्योंकि हमें वो चीज पसंद न आई होगी। समय इतना बीत गया कि, अब काॅपी ही नहीं रखते हैं। रफ़ काॅपी जीवन से बहुत दूर चली गई है,
 हालांकि अब बैग भी नहीं रखते हैं कि रफ़ काॅपी रखी जाए।
              वो खुरदुरे पन्नों वाली रफ़ काॅपी अब मिलती ही नहीं। हिसाब भी नहीं हुआ है बहुत दिनों से, न ही प्रेम का न ही गुस्से का, यादों की गुणा भाग का समय नहीं बचता।
अगर कभी वो रफ़ काॅपी मिलेगी उसे लेकर बैठेंगे, फिर से पुरानी चीजों को खगांलेगें, हिसाब करेंगे और आखिरी के पन्नों पर राजा, मंत्री, चोर, सिपाही खेलेंगे।
          वो 'नटराज' की पेन्सिल, वो 'चेलपार्क' की स्याही, वो महंगा 'पायलेट' का पेन और जैल पेन की लिखाई। वो सारी ड्राइंग, वो पहाड़, वो नदियां, वो झरने, वो फूल, लिखते लिखते ना जाने कब ख़त्म हुआ स्कूल।
 अब तो बस साइन करने के लिए उठती है कलम, पर आज न जाने क्यों वो नोटबुक का वो आखिरी पन्ना याद आ गया जैसे उस काट - पीट में छिपा कोई राज ही टकरा गया।
        जीवन में शायद कहीं कुछ कम सा हो गया। पलके भीगी सी है, कुछ नम सा हो गया। आज फिर वक्त शायद कुछ थम सा गया।

क्या आपको याद है आपकी वो रफ़ काॅपी📙

Friday 3 February 2017

वाह रे incredible India,###
जहाँ आज भी माँ बाप लड़कियों की शादी के लिए तो पैसे जमा करते हैं पर लड़कियों के कैरियर के लिए नहीं।
और सदियो से चला आ रहा वही एक जुमला लड़कियों के अहसास को कुचलता हुआ दबाता हुआ क्या करोगी 9करि कर के##
         "आखिर पराये घर ही तो जाना है।"😢

Friday 29 April 2016

देशद्रोह तथा धारा 124A की प्रासंगिकता

अभी कुछ दिनों पहले जवाहर लाल नेहरू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया सहित कुछ अन्य छात्रों पर कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने, देश का विभाजन करने आतंकी अफज़ल की फांसी का विरोध करने के आधार पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया गया है ! तब से ही भारतीय दंडसंहिता की धारा १२४ A की प्रासंगिकता पर फिर से चर्चा आरंभ हो गयी है.!                                                   इस कानून के अनुसार यदि कोई व्यक्ति यदि देश के खिलाफ लिखकर , बोलकर, संकेत देकर या फिर अभिव्यक्ति के ज़रिये विद्रोह करता है या फिर नफरत फैलता है या ऐसी कोशिश करता है तब ऐसी परिस्थिति में उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा १२४ A के तहत देश द्रोह का मामला बनता है ! इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले पर अधिकतम उम्रकैद तक का प्रावधान है !वहीँ  इस कानून के दायरे में स्वस्थ्य आलोचना नही आती , की राजद्रोह का सम्बंध हिंसा के लिए उकसाने या फिर अव्यवस्था से है!               
       हालांकि समय समय पर इस धारा की काफी आलोचना होती रही है , कुछ लोगों के अनुसार ये ब्रिटिश कालीन व्यवस्था है जो अब अप्रासंगिक हो चुकी है ! परन्तु भारत के अधिकांश कानून और भारतीय दंड संहिता की विधियाँ भी ब्रिटिश कालीन ही हैं तो यदि कोई अपराध हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति में कानून को अप्रासंगिक कहकर समाप्त तो नहीं किया जा सकता ! वैसे धारा १२४ A के दुरूपयोग  को रोकने के लिए सर्वोच्च् न्यायालय के द्वारा  व्यवस्था दी गयी है ! न्यायालय ने अनेक ऐसे फैसले सुनाये हैं जिस से यह स्पष्ट होता है कि कोई भी आम हरकत या फिर सरकार की आलोचना भर से  ही देशद्रोह का मामला नहीं बनता वरन उस विद्रोह के कारण हिंसा और कानून व्यवस्था की समस्या जैसी स्थिति उत्पन्न होना भी देखा जाता है !!  

  सर्वोच्च न्यायालय ने १९६२ में केदार नाथ बनाम बिहार राज्य नामक एक वाद में ऐतिहासिक फैसला सुनते हुए फ़ेडरल कोर्ट ऑफ़ इंडिया (ब्रिटिश ) से सहमति जताते हुए सात न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया कि देशद्रोह के मामले में हिंसा को बढ़ावा देने का तत्वा मौजूद होना ज़रूरी है महज़ नारेबाजी देशद्रोह नही मन जा सकता !! एक अन्य वाद बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य १९९५ के मामले में भी न्यायालय द्वारा ये कहा गया कि महज़ दो लोगो के द्वारा बिना और कुछ किये सिर्फ दो बार नारेबाजी करने से देश के सम्मुख कोई खतरा नहीं बनता है !!                                                              

दूसरी तरफ कुछ विधि विशेषज्ञों के मुताबिक देशद्रोह की परिभाषा काफी व्यापक है और इस कारण इसके दुरूपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है !! इसके दुरूपयोग को रोकने के लिए CRPC की धारा १९६ में प्रावधान किया गया है कि देशद्रोह से सम्बंधित दर्ज मामले में पुलिस को चार्जशीट के वक़्त मुकदमा चलाने के लिए केंद्र  अथवा राज्य सरकार से सम्बंधित प्राधिकरण से मंजूरी लेना ज़रूरी है !!                                              
    अतः अगर समग्र दृष्टि से देखा जाये तो प्रश्न देश द्रोह से कही जादा ऊपर देश के अखंडता और एकता का है और इसकी रक्षा के लिए हम सभी को एकजुट होकर बिना किसी भेदभाव के देश के लिए समर्पित होना चाहिए !! क्योंकि हमारा देश हमारे निजी हित से ऊपर है और इसके लिए किसी भी प्रकार की राजनीति करना या फिर ऐसा कदम उठाना जो इसके लिए खतरा बने बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए !! एक स्वस्थ्य राष्ट्र से ही एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण होगा जिसमे ही हम सब की भलाई है !!

"छोटी सी कोशिश"

Very important message so plz must read..

दोस्तो अगर आपके आसपास या किसी भी परिचित या अपरिचित को केंसर हो किसी भी प्रकार का तो आप उस मरीज के घर पर जाये ओर उसके परिवार या खुद मरीज को समझाये की उसकी जो भी दवाएं केंसर की चल रही हे चलने दे ओर वह साथ मे शीशम के पेड के पत्तों का ज्युस भी दस से पंद्रह दिनों तक लेवें ओर उसके बाद शीशम के पत्ते को चबाना हर रोज शुरू करें देखते देखते ही आपको केंसर के मरीज के अंदर शानदार बदलाव आने दिखने लगे गे ओर यह बिमारी खत्म हो जाती है दोस्तों आपका ओर मेरा छोटा सा प्रचार किसी के भी परिवार मे वापिस खुशियां ला सकता हे तो प्लीज यह काम आप आज से शुरु करे ।

डा०अनीश गर्ग
चंडीगढ.

डॉक्टर अनीश गर्ग की पोस्ट को अपने ब्लॉग पर अपडेट करने का मेरा मकसद केवल इतना है कि अगर इससे किसी कैंसर के मरीज़ को फायदा हो सके तो मेरी ये छोटी सी कोशिश को कामयाबी मिल जाये, और कोई किसी अपने करीबी के साथ से महरूम न हो।

Thursday 28 April 2016

“अरे हुज़ूर गुड मोर्निंग नहीं ग्लोबल वार्मिंग कहिए”




      जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) । 

क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह? 


ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है। 

इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है। 





ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :

और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। 

समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे। 

मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। 

पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे। 

शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा। 

ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें? 

ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे : 

1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा। 
2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेट्रोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं। 
3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है। 
4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो।